आज़मगढ़। रबी की फसलों की बोआई के लिए किसान डीएपी के लिए जूझ रहे हैं। आज़मगढ़ मंडल के तीन जिलों मऊ, आजमगढ़, बलिया में किसान रतजगा करके डीएपी लेने का प्रयास कर रहे हैं। समितियों के चक्कर काट रहे फिर भी डीएपी नहीं मिल पा रही। ऐसे में निजी समितियों से महंगे दाम पर डीएपी खरीदनी पड़ रही है।
आज़मगढ़ मंडल में मऊ में स्थिति ज्यादा खराब है। यहां 2600 मीट्रिक टन की जगह 400 मीट्रिक टन खाद उपलब्ध कराई गई है। इसके चलते किसान परेशान हैं। भाेर से ही किसान सहकारी समितियों के बाहर कतार में लग जाते हैं। आजमगढ़ में भी नवंबर में 7800 मीट्रिक टन की मांग के सापेक्ष 900 मीट्रिक टन डीएपी व एनपीके उपलब्ध कराई गई थी। यहां भी किसानों में खाद के लिए मारामारी जैसी स्थिति है।
बलिया जिले में 2600 मीट्रिक टन खाद की मांग है। डीएपी 1185 मीट्रिक टन और एनपीके 892 मीट्रिक टन उपलब्ध कराई गई थी। खाद की कमी के कारण फसल की बोआई पिछड़ रही है। वहीं अधिकारी दावा कर रहे है कि खाद की कोई कमी नहीं होने पाएगी।
समस्या की एक वजह यह भी
खसरा खतौनी पर प्रति हेक्टेयर तीन बोरी डीएपी और छह बोरी यूरिया दी जा रही है। सुविधा के साथ ही यही नियम समस्या का कारण बन रहा है। एक बड़ी आबादी अधिया या बटाई पर खेती कराती है। खेत के कागज मालिक के नाम हैं पर जब बटाईदार खाद लेने जाता है तो उससे खसरा खतौनी और आधार कार्ड मांगा जाता है। अब बाहर रहने वाला व्यक्ति कागज भी उपलब्ध करा दे तो स्वयं मौके पर पहुंच पाना उसके लिए मुश्किल होता है। इसके चलते खाद को लेकर समस्या आ रही है।