आज़मगढ़। पिछले लोकसभा चुनाव और 2022 के उपचुनाव में बसपा तीसरे नंबर पर थी। इस बार पार्टी को कोई दमदार चेहरा नहीं मिला। इससे समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी राहत महसूस कर रही है। साथ ही उनकी टेंशन भी बढ़ गई है। क्योंकि दोनों ही दलों को इस बार दलित वोटरों में बिखराव का डर सताने लगा है।
दोनों ही राजनीतिक दल इस बात से डर रहे हैं कि अगर दलित वोटर विपक्षी के साथ गए तो उनका खेल बिगड़ सकता है। वहीं बसपा प्रत्याशी नामांकन के दिन से इस चुनाव को बाहरी बनाम स्थानीय बनाने में जुटे हैं।
मौजूदा चुनाव में बसपा ने इस सीट पर पहले पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर को प्रत्याशी बनाया। इसके बाद पार्टी ने उन्हें सलेमपुर सीट से चुनाव लड़ने के लिए भेज दिया और उनके स्थान पर सबीहा अंसारी को प्रत्याशी बनाया। फिर दो दिन बाद ही पार्टी ने उनका टिकट काटकर उनके पति मशहूद अहमद को टिकट दे दिया। मशहूद अहमद का नाम राजनीति में कभी किसी ने सुना भी नहीं था। ऐसे प्रत्याशी को बसपा द्वारा मैदान में उतारने से सपा और भाजपा दोनों की टेंशन बढ़ गई है।
अब दोनों दलों को दलित वाेटों में बिखराव की चिंता सताने लगी है। क्योंकि अगर यह दलित वोटर सपा और भाजपा में से किसी के साथ जुड़े तो दूसरी पार्टी को खतरा हो सकता है। जिसे देखते हुए दोनों पार्टियों की नजर अब दलित मतदाताओं पर टिकी हुई है। आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 18,60,786 है। जिसमें 9,84,674 पुरुष और 8,76, 0069 महिला मतदाता शामिल हैं।
अगर मतदाताओं का जातिवार आंकड़ा देखें तो लगभग 24 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 37 प्रतिशत पिछड़ा और अन्य पिछड़ा वर्ग, 27 प्रतिशत सवर्ण और लगभग 12 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। पिछड़ों में यादव और मुस्लिम मतदाताओं को सपा का कोर वोटर माना जाता है। जो इस बार एकजुट नजर आ रहा है।