आजमगढ़। आर्थिक विषमताओं और निरंतर असफलताओं से जूझते हुए ग्राम चौकी देवगांव के बिजेंद्र कुमार, पुत्र कामता प्रसाद, ने संघर्ष को अपनी शक्ति बनाया और सीमा सड़क संगठन (Border Roads Organisation – BRO) में अभियंता के रूप में चयनित होकर अपने गांव और जिले का नाम रोशन किया। उनकी यह उपलब्धि संकल्प, परिश्रम और आत्मनिर्भरता की प्रेरणादायक कहानी है, जो हर उस विद्यार्थी के लिए मार्गदर्शक बन सकती है, जो संसाधनों के अभाव में अपने सपनों से समझौता करने पर विवश होता है।

शिक्षा यात्रा: विपरीत परिस्थितियों में भी लक्ष्य पर अडिग रहे

बिजेंद्र कुमार की प्रारंभिक शिक्षा जूनियर हाई स्कूल देवगांव में हुई, जहां श्याम कन्हैया और रामफेर जी जैसे समर्पित गुरुजनों ने उन्हें दिशा दिखाई। इसके बाद उन्होंने श्रीकृष्ण गीता राष्ट्रीय कॉलेज लालगंज से 10वीं एवं 12वीं उत्तीर्ण की। तकनीकी शिक्षा के लिए उन्होंने राजकीय पॉलिटेक्निक डीबाई, बुलंदशहर से डिप्लोमा प्राप्त किया, जहां रवि शंकर वर्मा, नवीन वर्मा, वरुण सर और आशीष सर के मार्गदर्शन में उन्होंने अभियंत्रण की गहराई को समझा।

प्रतिस्पर्धा और कठिन परीक्षा में सफलता

एसएससी जूनियर इंजीनियर परीक्षा भारत की अत्यंत प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में से एक है, जिसमें सिविल, इलेक्ट्रिकल एवं मैकेनिकल अभियंत्रण के डिप्लोमा, बीटेक और एमटेक योग्यता वाले लगभग 3 लाख परीक्षार्थी सम्मिलित हुए थे। इन परीक्षार्थियों के बीच 1701 रिक्तियों के लिए चयन प्रक्रिया संपन्न हुई। प्रीलिम्स और मेंस दोनों चरणों में अपनी उत्कृष्ट प्रतिभा प्रदर्शित कर बिजेंद्र ने यह सफलता अर्जित की।

आर्थिक संघर्ष और आत्मनिर्भरता की प्रेरणादायक गाथा

बिजेंद्र का जीवन आर्थिक कठिनाइयों से भरा रहा, किंतु उन्होंने अपनी परिस्थितियों को अपने सपनों के आड़े नहीं आने दिया। आर्थिक स्थिति को देखते हुए उन्होंने एक प्राइवेट सिविल कंस्ट्रक्शन कंपनी में बतौर प्राइवेट इंजीनियर कार्य किया, साथ ही साथ अपनी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी भी जारी रखी। इसके अतिरिक्त, उन्होंने यूट्यूब के माध्यम से पॉलीटेक्निक डिप्लोमा के छात्रों को इंजीनियरिंग ड्राइंग निःशुल्क पढ़ाने का कार्य प्रारंभ किया, जिससे न केवल उन्हें आर्थिक संबल मिला, बल्कि अनेक विद्यार्थियों को भी लाभ प्राप्त हुआ।

“मैंने संसाधनों की कमी को कभी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। सीमित साधनों में भी संघर्ष कर आगे बढ़ना ही असली विजय होती है। जब तक हम प्रयास करना नहीं छोड़ते, तब तक असफलता केवल एक पड़ाव होती है, मंज़िल नहीं।” – बिजेंद्र कुमार

परिवार, मित्रों और गुरुजनों का अविस्मरणीय योगदान

बिजेंद्र ने अपनी सफलता को अपने माता-पिता, गुरुजनों और मित्रों को समर्पित किया। विशेष रूप से उन्होंने अपनी माता सुखरजी देवी को याद करते हुए कहा –
“मेरी मां मुझे अभियंता बनते देखना चाहती थीं। आज जब मैं इस मुकाम पर हूँ, तो उनका आशीर्वाद ही मेरी सबसे बड़ी ताकत है। काश, वे आज मेरे साथ होतीं। लेकिन मुझे यकीन है कि वे जहां भी होंगी, मुझे देखकर मुस्कुरा रही होंगी।”

इसके अतिरिक्त, उनके भाइयों अरविंद, नरेंद्र, रवींद्र और सुरेंद्र कुमार, बहन नीलम देवी, तथा उनके प्रिय मित्र विकास बैनबंशी, अभिषेक गुप्ता, दिलीप, दिव्यांशु, चंदन और ज्ञानेश्वर व्यास ने कठिन समय में हर कदम पर उनका मनोबल बढ़ाया और संबल प्रदान किया।

गांव के बच्चों और असफल प्रतियोगियों के लिए प्रेरणास्पद संदेश

बिजेंद्र अपने गांव चौकी देवगांव के पहले अभियंता बने हैं, जिससे पूरे गांव में हर्ष और गर्व का वातावरण है। उन्होंने कहा –
“गांव और मध्यमवर्गीय परिवेश के विद्यार्थियों को अक्सर यह लगता है कि सफलता केवल साधनों से प्राप्त होती है। मैं कहना चाहता हूँ कि यदि संकल्प दृढ़ हो, तो परिस्थितियाँ कितनी भी प्रतिकूल क्यों न हों, सफलता अवश्य मिलेगी।”

उन्होंने उन प्रतियोगी छात्रों को भी संदेश दिया, जो निरंतर असफलताओं से जूझ रहे हैं –
“असफलता एक सीख होती है, पराजय नहीं। जो एक बार हारा, वह हमेशा के लिए हारा नहीं होता। यदि मेहनत, समर्पण और धैर्य बनाए रखा जाए, तो हर असफलता सफलता का द्वार बन सकती है।”

ज्ञान को बना रहे माध्यम, यूट्यूब पर निःशुल्क शिक्षा

अपनी शिक्षा यात्रा में आए संघर्षों को समझते हुए, बिजेंद्र आज पॉलीटेक्निक डिप्लोमा छात्रों को इंजीनियरिंग ड्राइंग निःशुल्क पढ़ा रहे हैं। उनका उद्देश्य है कि किसी भी छात्र को संसाधनों के अभाव में ज्ञान से वंचित न होना पड़े।

“सीखने और सिखाने का कार्य कभी व्यर्थ नहीं जाता। मेरी कोशिश यही है कि जिन कठिनाइयों का सामना मैंने किया, वे अन्य विद्यार्थियों के लिए बाधा न बनें।”

संसाधनों की नहीं, संकल्प की आवश्यकता होती है”

बिजेंद्र कुमार की यह सफलता हर उस छात्र के लिए प्रेरणा है, जो आर्थिक चुनौतियों और बार-बार की असफलताओं से जूझ रहा है। उनका मानना है कि सपनों को पूरा करने के लिए परिस्थितियों का नहीं, बल्कि समर्पण और आत्मविश्वास का महत्व अधिक होता है।

“संघर्ष ही सफलता की आधारशिला है, और आत्मविश्वास वह दीपशिखा, जो अंधकार को पराजित कर विजय का पथ प्रशस्त करती है।”