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लखनऊ। लोकसभा चुनाव के तीन चरण पूरे हो चुके हैं। अब चार चरणों का चुनाव शेष बचा है। इन चार चरणों में यूपी में 54 सीटों के लिए मतदान होना है। इन सीटों को पाने के लिए वैसे तो सभी पार्टियां जोर आजमाइश में लगी हैं, लेकिन सबसे अधिक दलित वोट बैंक को लेकर रार छिड़ी हुई है। बसपा इन्हीं चार चरणों में अपना कॉडर वोट बैंक बचाए रखने के लिए जी-जान लगाए हुए है, तो कुछ दूसरी पार्टियां सेंधमारी को बेताब हैं। बसपा इसे रोकने के लिए अब पोल खोलो अभियान चलाने जा रही है। उसके कार्यकर्ता मतदाताओं को बताएंगे कि बसपा कैसे हितैषी और अन्य कैसे आरक्षण विरोधी है।
आधार वोट बैंक की चिंता
दलित वोट बैंक बसपा का आधार वोट बैंक माना जाता रहा है। मायावती इस वोट बैंक को बचाए रखने के लिए हमेशा लगी रहती हैं। बसपा सुप्रीमो इसके सहारे ही यूपी में मुख्यमंत्री बन चुकी हैं। बसपा का दावा है कि विपरीत परिस्थितियों में भी इस वोट बैंक ने उनका साथ नहीं छोड़ा। पश्चिमी यूपी के आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद भी इसी वोट बैंक के सहारे अपनी राजनीति चमकाना चाहते हैं। जब चुनाव लड़ने की बात आई तो उन्होंने नगीना जैसी सुरक्षित सीट को ही चुना। मायावती अपना वोट बैंक किसी भी कीमत पर बिखरने नहीं देना चाहती हैं। इसको अपने साथ बांधे रखने के लिए ही मायावती ने भतीजे आकाश आनंद को आगे किया। उन्हें राष्ट्रीय समन्वयक के साथ ही अपना उत्तराधिकारी घोषित कर समाज में यह संदेश दिया कि बसपा की कमान समाज के हाथों में ही रहेगी। यह बात अलग है कि आकाश के उग्र भाषणों के चलते उन्हें अपरिपक्व बता कर मायावती को उनको हटाना पड़ा, फिर भी वह ऐसा कोई संदेश नहीं जाने देना चाहती हैं, जिससे सपा इसका फायदा उठा पाए। इसीलिए उन्होंने सपा मुखिया अखिलेश यादव के तंज पर तुरंत पलटवार किया।
आरक्षण बनेगा हथियार
लोकसभा चुनाव में इस बार संविधान बदलने और आरक्षण का मुद्दा गर्म है। दलित समाज में आरक्षण की व्यवस्था को खत्म किए जाने की चर्चाएं हैं। बसपा इसी को अब हथियार बनाने जा रही है। बसपा के एक राष्ट्रीय कोआर्डिनेटर नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि हमारा वोट बैंक दलित समाज है। हम आरक्षण के मुद्दे को लेकर समाज के बीच में जाएंगे और उन्हें बताएंगे कि कैसे साजिश की जा रही है। यह भी बताया जाएगा कि कैसे सपा सरकार में अति पिछड़ी जातियों को एससी का दर्जा देने का खेल खेला गया। अब विरोधी पार्टियां बाबा साहब का नाम लेकर वोट हथियाना चाहती हैं। बसपा के लोग अब चट्टी-चौराहों पर सभाएं कर आरक्षण विरोधी और आरक्षण समर्थक होने का तर्क पेश करेंगे। उन्हें बताएंगे कैसे पदोन्नति में आरक्षण का विरोध किया गया। यह भी बताया जाएगा कि सत्ता की चाबी हाथ में लेकर ही आरक्षण को बचाया जा सकता है।