अयोध्या। मिल्कीपुर उपचुनाव में हार का ठीकरा सपा मुखिया अखिलेश यादव भले ही चुनाव आयोग और पुलिस-प्रशासन पर फोड़ रहे हों, लेकिन सियासी बिसात पर सपा की हर चाल नाकाम हाे गई। चुनावी शतरंज में सपा को अपनी ही चली कुछ चालों से भी नुकसान हुआ। अजीत की छवि भी उतनी लोकप्रिय नहीं है, जितनी उनके सांसद पिता अवधेश प्रसाद की है। इसका भी नुकसान पार्टी को उठाना पड़ा।

उपचुनाव में हार के बाद सपा अध्यक्ष ने खुलकर कहा कि चुनाव आयोग मर गया है और सरकार ने धांधली कराई। सपा समर्थक वोटरों को घर में कैद करने के भी आरोप लगाए, लेकिन मिल्कीपुर की चुनावी तस्वीर देखें तो कई बातें शीशे की तरह साफ दिखाई देंगी। लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के तुरंत बाद ही सीएम योगी डैमेज कंट्रोल में जुट गए थे। मिल्कीपुर में विकास कार्य कराए। फिर उन्होंने उपचुनाव की कमान खुद संभाली और छह बार प्रचार के लिए गए। यही नहीं मंत्रियों की फौज लगातार वहां डेरा डाले रही।

वहीं, सपा हाईकमान लड़ाई में दिखा ही नहीं। अखिलेश आखिर में सिर्फ एक बार प्रचार के लिए गए। पिछले उपचुनावों में भाजपा की एकतरफा जीत को देख सपा कार्यकर्ता पहले ही हताश था। इस मनोदशा से कार्यकर्ताओं को बाहर निकालने की भी पार्टी की ओर से कोई कोशिश नहीं हुई। यही वजह रही कि सपा कार्यकर्ता जमीन पर उस तरह से लड़ते नहीं दिखे, जिसे लेकर उनकी पहचान है।

अति आत्मविश्वास और यादव मतों में बिखराव पड़ा भारी

पुलिस ने सपा के एससी-एसटी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष के साथ कथित रूप से अभद्रता की। इससे समर्थकों में संदेश गया कि सपा फिलहाल नेताओं का सम्मान बचा पाने में भी सक्षम नहीं है। दलित की बेटी की मौत पर सपा प्रत्याशी अजीत प्रसाद के पिता और सांसद अवधेश प्रसाद खूब रोए, फिर भी मतदाताओं पर असर नहीं हुआ। रही सही कसर शुरुआत में सपा के अति आत्मविश्वास ने पूरी कर दी। इसी वजह से ‘मथुरा न काशी, मिल्कीपुर में अजीत पासी’ की नारा भारी पड़ गया। हिंदुत्व समर्थकों को इस नारे ने एकजुट कर दिया। मिल्कीपुर में 50 हजार से ज्यादा यादव वोटर हैं। सपा इस सीट को अपने लिए सुरक्षित मानती थी, लेकिन इस बार यादव वोट में भी सेंध लग गई। यादव मतदाता इस बार बड़ी संख्या में छिटक कर भाजपा के पाले में चले गए।